||शनिवार संवाद|| 18/1/2025

 GST लागू हुए अब 7 साल हो गए है। अभी इसके क्रियान्वयन में कुछ कमी है, पर इसका फायदा दिखने लगा है। अगर हम रेवेन्यू जेनरेशन को देखे तो ये बढ़ रहा है। सिर्फ रेवेन्यू ही नहीं बढ़ रहा बल्कि economy का  फार्मल भी हो रही है।

जैसे जैसे समय बढ़ता जाएगा वैसे वैसे रेवेन्यू बढ़ता जाएगा और लोगों का विश्वास भी।

जब VAT था तब रेवेन्यू लीकेज था और सरकार अपनी आमदनी का अनुमान भी नहीं लगा सकती थी क्योंकि उसमें जो कमी थी वह टैक्स पे करने की अपनी मर्जी, जब चाहा तब पैसे भर दिया। इससे VAT लाने का उद्देश्य विफल हो गया। क्योंकि आप इनपुट क्रेडिट नहीं ले सकते थे।

पर VAT ने एक पारदर्शी सिस्टम का जन्म दिया जिसे सही से क्रियान्वयन नहीं हो सका। अभी GST का एक मुद्दा है पर वो भी आने वाले समय में कुछ कम हो जाएगा। अभी केंद्र सरकार और राज्य सरकार अपनी आमदनी को पूर्वानुमान लगा कर उसे पूरा होता देख रही है। 

केंद्र सरकार रेवेन्यू लॉस को  भरकर  अभी दे रही हैं पर राज्य सरकार के लॉस ज्यादा है क्योंकि वो एक लीगेसी इश्यू है। आज राज्य सरकार अपनी आमदनी और खर्च को मिला नहीं पा रही क्योंकि खर्चे ज्यादा है और आमदनी कम।

इसमें अगर ब्याज जोड़ दे तो ये और ज्यादा होती है। सरकारों ने जो उधार RBI से लिया है अपने खर्चे के लिए।

अभी GST में पेट्रोलियम प्रोडक्ट और शराब इसमें नहीं आते, इन पर VAT लगता हैं। फिर भी रेवेन्यू लॉस है उनका।

अगर पेट्रोलियम प्रोडक्ट को GST में आ गए तो अभी सरकार की औसत आमदनी 1.8L करोड़ है वह बढ़ कर 2.5L करोड़ पार कर जाएगी।

अभी तक का मासिक रेवेन्यू जेनरेशन है उसका चार्ट देखते है


जैसा कि हमने ऊपर देखा आमदनी में पेट्रोलियम प्रोडक्ट नहीं है पर इकोनॉमी फॉर्मल होती जा रही है और साल दर साल बढ़ रही है। जो हमें बढ़ती हुए अर्थव्यवस्था में दिखती है।

पर GST से मिलने वाले फायदे ज्यादा है और है सरकार से मांगने का अधिकार भी।

गुड्स और सेवा में इनपुट क्रेडिट मिलने से आप अपने खर्चे का हिसाब किताब और टैक्स लायबिलिटी को पूर्व में ही जान जाते हैं और आपको प्लान करने के लिए समय भी मिलता है।

अभी इसमें और सुधार आयेंगे रेट भी कम होंगे।

टैक्स कंप्लायंट सोसाइटी की पहली बुनियाद GST ने डाली है और ये इसका सबसे बड़ा फायदा है।



Comments

Popular posts from this blog

|| SHANIWAR TALK || 17-12-2022

|| SHANIWAR SAMWAD || 18-12-2021

FINANCIAL PLANNING REVISITED