|| शनिवार संवाद || 18-11-2023
अभी पिछले हफ्ते सात साल हो गए नोट बंदी को। अब इस निर्णय की समीक्षा समय समय होती रही है। नोट बंदी का व्यापक असर हमारी जिंदगी में हुआ है। चाहे हमारी सोच हो या व्यव्हार हम बदल गए है। आज हम इसके दोनो पहलुओं का विश्लेषण करने की कोशिश करेंगे । इसमें पहला पहलू हम मे जो मनोवैज्ञानिक बदलाव आया है आज उसको देखेंगे, अगले बार हम इसके आर्थिक परिणामों का अध्ययन करेंगे ।नोटबंदी से पहले हम लोग आर्थिक भ्रष्टाचार या सामाजिक भ्रष्टाचार को नीयती मान चुके थे । किसी भी काम को करने के लिए या करवाने के लिए हमे रिशवत लेना या देना शिष्टाचार का या जीवन का एक अंग बन चुका था । ये अब तक जो हमने बात की वो सर्वविधित थी और है ,पर इससे जादा समस्या ये थी कि हम लोग पैसे को नगद रूप मै संचय करने मै विश्वाश करते थे इससे पैसों का जो उपयोग मार्केट मै होना चाहिए लिक्विडिटी मेंटेन करने के लिए होना चाहिए वो नही होता था । इससे भारतीय रिजर्व बैंक को बार बार नए नोट छापने पड़ते थे इसका परिणाम ,ये होता था की कॉस्ट ऑफ कैपिटल या पूंजी की कीमत बहुत ज्यादा थी । पूंजी की तरलता बाधित होती रहती थी ये हुआ पहला पहलू,
इसका दूसरा पहलू नकली नोटों से संबंधित था। नोटों का अत्यधिक या प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध होना था इसकी प्रणीति ,भ्रष्टाचार ,आतंकवाद और सामाजिक अशांति के रूप मै दिखता था जैसे कि हमने पहले कहा था कि इन सारी चीज़ों को हमने नीयती मान रखा था। तो हम इन सब चीजों को इग्नोर करते थे ये इन दोनो ही बातो को आप जोड़ कर देखे तो आर्थिक विषमता तथा हमारे अलावा दुनिया का फायदा कर रहे थे। वस्तुता आर्थिक विषमता बढ़ रही थी और हम दुनिया का फायदा कर रहे थे। हमने अपना बाजार दुनिया के लिए खोला था बल्की हमने अपने आप को उनके चरणों मे नतमस्तक कर दिया था ।नोटबंदी ने जो प्रहार किया उससे उपरोक्त सारी बातो को अपनी नियति मानना बंद करना पड़ा अगर आज आप देखे तो हमने अपने घर मे नगदी रखना खत्म तो नही पर कम कर दिया है इसका असर वेल्थ क्रियेशन या वेल्थ डिस्ट्रीब्यूशन बहुत तेज़ी से होने लगा है ।
क्रमश...
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